Saturday, 11 April 2009

विचार-मंथन -भाग १ - सड़क



आजकल हम सब एक गतिशील जीवन चक्र मैं फसें है । हर कोई अपने जीवन मैं सफल होना चाहता है । इस होड़ मैं जीवन के मुलभुत सुख हम पूरी तरह से नही उपभोगते है । मेरे मन मैं एक विचार आया क्यों ना कोई अच्छी चीज हम करे जिससे लोगों का मनोरंजन भी हो जाए एवेम बुद्धिजीवियों के विचारो का आदान प्रदान भी आसानी से हो। इसी चाह मैं हमने यानी मैं, हरीश , विकास और प्रसाद , हम सबने यह सोच के यह ब्लॉग बनाया है।
ब्लॉग की दुनिया बड़ी न्यारी है। हम किसी आदमी तक अपने विचार बड़ी ही कुशलता से पंहुचा सकते है।

चलिए अब हम फिर हमने गतिशील जीवन के मुद्दे पे आते है।
बड़े महानगरो मैं हर सेकंड की बहुत कीमत होती है । हर देरी भारी नुक्सान के लिए जिम्मेदार हो सकती है। अब एक उदहारण ले लीजिये इस गतिशीलता का --> हर सड़क के मुख्य चौराहों पे रास्ता पार करने के लिए जेब्रा क्रॉसिंग बने हुए है। इन क्रॉसिंग का उपयोग इसलिए करना चाहिए ताकि भारी ट्रैफिक मैं हम बिना किसी अड़चन के रास्ता पार करे। क्या आपने बंगलोर की सड़को पे इस नियम का पालन करते हुए किसी को देखा है। अगर कोई पादचारी रास्ता पार करने की कोशिश करने रास्ते पर निकल आए तो वहां चालक उसी पे अपना वाहन चला देंगे। क्या हम अपने वक्त का एक क्षण इस चीज़ के लिए नही दे सकते ? और तो और रास्ते के दूसरी और से अमेरिका मैं प्रशिक्षित वाहन चालक बाए जगह से जाने के बजाये दाए और से आयेंगे। इसका मतलब गाड़ी चलाए हुए दोहरे संकट क सामना करना पड़ेगा। विक्सित देशों मैं हार्न बजाना असभ्यता की निशानी होती है और हमारे यहाँ हार्न बजाये बगैर तो गाड़ी ही नही हिलेगी। गाय बैल तो रास्ते को अपनी गोशाला समझते है। सड़क के किनारे के कुत्ते तो कुत्तियों को ताकते फिरते है। इसी बीच अगर कोई कुत्ती रास्ता क्रॉस कर किसी और कुत्ते के पास जाए तो सब कुत्ते हमारे नेताओं की तरह भोकने लगते है। रास्ते के दोनों और बड़े बड़े गतिरोधक है। ऐसे और दो एक एक करके डाल दे तो मोटोक्रोस स्पर्धा क आयोजन भी आसानी से हो सकता है ।
अब करते है ट्रैफिक जाम की बात। भाई साहब आप तो अंदाजा ही लगन छोड़ देंगे जब आपको पता चले की आपका कितना कीमती वक्त इस ट्रैफिक मैं जाया होता है।
मान लीजिये आपको अपने ऑफिस जाने के लिए १ घंटा लगता है। अब इस समय मैं आप कम से कम (बंगलोर मैं तो सही ) आधा घंटा ट्रैफिक मैं व्यतीत करते है। इस हिसाब से दिन क हुआ १ घंटा। महीने के २२ दिन मतलब २२ घंटे और ऐसे १२ महीने मतलब कुल मिला के २६४ घंटे यानी की ११ दिन। आप इस कीमती समय का मूल्य अभी नही समझ पायेगे। ट्रैफिक जाम मैं फसने पे तो आदमी हर तरफ़ से वायु प्रदुषण क शिकार होता है। हिटलर भाईसाहब तो कब के चले गए और यह ट्रक वालें और फट-फटिये छोड़ गए गैस चैंबर के जगह आ गए हम बेचारे भारतीयों को तंग करने । अगर कोई गर्भवती महिला इन सडको पे से जायेगी और अगर वोह इन जाम मैं फस गई तो अगले दिन अखबारों मैं यह भी ख़बर आ ही जायेगी की महिला ने बच्चे को बस मैं जन्म दिया।
वैसे अभी तो सब रास्ते गाड़ियों से ही भरे हुए है। पादचारियों के लिए तो कोई जगह नही है। गरीब आदमी भी आजकल फूट पाथ पे चैन से सो नही सकता की कही कोई सलमान उन पे गाड़ी ना चला दे।
कभी तो मुझे इन बस ड्राईवर पे दया आती है इस बात की, की यह लोग दिन भर इस घटिया वायु मैं अपना स्वस्थ्य ख़राब कर, घटिया सड़कों पे घटिया ट्रैफिक के बीच चला के जिंदा कैसे रहते है।
हमारा देश दुनिया के सामने मिसाल दे रहा है की हम कोई भी परिस्तिथी मैं भी जी सकते है। आखीर हम कब सुधरेंगे ? कब हम मूलभूत सुविधा के साथ साथ सड़कों की तरफ़ ध्यान देंगे। चीन के और हम बहुत ध्यान देते है और चीन की तरह प्रगति करने की भाषा करते है , लेकिन कभी सड़कों के बारे मैं कुछ क्यों नही करते।
हालत इसी तरह बरक़रार रहेंगे जब तक एक दिन ऐसा ना आ जाए की आदमी मरने पर भी दफनाने के लिए जगह ना बची हो और बगल मैं एक कार पार्क की गई हो।

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